अनसुलझे रहस्यों में सबसे पहला नाम आता है 'क्रिस्टल स्कल' का, क्या है इस अनोखी खोपड़ी का रहस्य?
- इन खोपड़ियों को बनाने के बाद पूरी दुनिया में जगह-जगह पर बिखेर दिया गया
- माना जाता है अगर ये कभी साथ मिल जाएं तो पूरी दुनिया में कुछ भी कर सकती हैं
अनसुलझे रहस्यों में सबसे पहला नाम आता है 'क्रिस्टल स्कल' का, क्या है इस अनोखी खोपड़ी का रहस्य?
- इन खोपड़ियों को बनाने के बाद पूरी दुनिया में जगह-जगह पर बिखेर दिया गया
- माना जाता है अगर ये कभी साथ मिल जाएं तो पूरी दुनिया में कुछ भी कर सकती हैं
- नई दिल्ली। पारदर्शी क्रिस्टल खोपड़ियों के मिलने से वैज्ञानिक हैरान थे जैसे-जैसे दिन बीते इसको लेकर रहस्य और गहराता चला गया। इन पारदर्शी खोपड़ियों को लेकर कई तरह की बातें सुनने को मिलती हैं। कुछ लोगों का मानना है ये खोपड़ियां दूसरी दुनिया से आई हैं। कुछ लोग मानते हैं कि ऐसी ही 13 और खोपड़ियां दुनियाभर में फैली हुई हैं जिनके साथ मिल जाने पर दुनिया में कुछ अनर्थ होगा। इस खोपड़ी को लेकर वैज्ञानिकों ने कई शोध किए हैं लेकिन उन्हें इसे लेकर सारी जानकारी हासिल नहीं हुई। बता दें कि दुनियाभर में अनसुलझे रहस्यों में सबसे पहला नाम क्रिस्टल स्कल का ही आता है। जिन लोगों के पास ऐसी ही खोपड़ियां हैं उनकी खोज लगातार जारी है।

क्वार्ट्ज की बनी इस खोपड़ी को लेकर नेशनल जियोग्राफिक ने एक रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट के मुताबिक, ये पूर्व-कोलंबियाई मेसोअमेरिका की देन है। अध्ययन की मानें तो इसके 1300 से 1521 के बीच में बनाए जाने की संभावना है। इन खोपड़ियों को बनाने के बाद पूरी दुनिया में जगह-जगह पर बिखेर दिया गया। जानकारों का एक बड़ा दल ये भी मानता है कि ये एलियंस की देन हैं। ऐसा मानने के पीछे की वजह है कि जिस समय ये खोपड़ियां बनीं उस समय इतनी बारीकी से खोपड़ी को गढ़ने की तकनीक ही विकसित नहीं हुई थी।

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पहली बार ये मंदिर के खंडहरों में मिली थी। लगातार हो रहे शोध के बाद भी आज तक ये नहीं पता चल पाया कि ये कैसे बना। और इसे बनाने के पीछे असल मकसद क्या था। ब्रिटिश लेखक फ्रेडरिक मिशेल-हेजस की गोद ली हुई बेटी ने सबसे पहले इस खोपड़ी का ज़िक्र किया था। उनकी बेटी का नाम अन्ना मिशेल-हेजस था जिसने दावा किया था कि बेलीज़ शहर में एक पूजा स्थल पर ये स्कल मिला है। सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि पारदर्शी क्वार्ट्ज से बने इस स्कल को बेहद सटीक तरह से बनाया गया है। इसे इंसानी सर से मिलता-जुलता बनाया गया है। जिसका वजन 12 पौंड और लंबाई-चड़ाई 8 इंच-5 इंच है। इसके जबड़े हिलते-डुलते हैं। माना जाता है बाकी बिखरी खोपड़ियों साथ मिलेंगी तो बोलेंगी और फिर कुछ अनर्थ होगा।

लेखक की बेटी अन्ना जब 100 साल की हुईं तो वे दावा करती थीं कि ये खोपड़ी ही उन्हें स्वस्थ रखती है। उनका दावा था क्रिस्टल स्कल उन्हें खतरों से आगाह कराता है। इन बातों को फैलने में समय नहीं लगा और कई लोग अन्ना के पास हीलिंग कराने आने लगे। इसके बाद कुछ लोगों के पास से और भी ऐसी खोपड़ियां बरामद हुईं। वैज्ञानिकों की थ्योरी थोड़ी अलग है। उनका कहना है कि कोई भी खोपड़ी प्री-कोलंबियन नहीं लगती। उनका कहना है कि इसे तराशने की तकनीक बिलकुल आधुनिक है। इसको बनाने की तकनीक विशेषज्ञों को असमंजस में डालती है।

क्वार्ट्ज की बनी इस खोपड़ी को लेकर नेशनल जियोग्राफिक ने एक रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट के मुताबिक, ये पूर्व-कोलंबियाई मेसोअमेरिका की देन है। अध्ययन की मानें तो इसके 1300 से 1521 के बीच में बनाए जाने की संभावना है। इन खोपड़ियों को बनाने के बाद पूरी दुनिया में जगह-जगह पर बिखेर दिया गया। जानकारों का एक बड़ा दल ये भी मानता है कि ये एलियंस की देन हैं। ऐसा मानने के पीछे की वजह है कि जिस समय ये खोपड़ियां बनीं उस समय इतनी बारीकी से खोपड़ी को गढ़ने की तकनीक ही विकसित नहीं हुई थी।

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पहली बार ये मंदिर के खंडहरों में मिली थी। लगातार हो रहे शोध के बाद भी आज तक ये नहीं पता चल पाया कि ये कैसे बना। और इसे बनाने के पीछे असल मकसद क्या था। ब्रिटिश लेखक फ्रेडरिक मिशेल-हेजस की गोद ली हुई बेटी ने सबसे पहले इस खोपड़ी का ज़िक्र किया था। उनकी बेटी का नाम अन्ना मिशेल-हेजस था जिसने दावा किया था कि बेलीज़ शहर में एक पूजा स्थल पर ये स्कल मिला है। सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि पारदर्शी क्वार्ट्ज से बने इस स्कल को बेहद सटीक तरह से बनाया गया है। इसे इंसानी सर से मिलता-जुलता बनाया गया है। जिसका वजन 12 पौंड और लंबाई-चड़ाई 8 इंच-5 इंच है। इसके जबड़े हिलते-डुलते हैं। माना जाता है बाकी बिखरी खोपड़ियों साथ मिलेंगी तो बोलेंगी और फिर कुछ अनर्थ होगा।

लेखक की बेटी अन्ना जब 100 साल की हुईं तो वे दावा करती थीं कि ये खोपड़ी ही उन्हें स्वस्थ रखती है। उनका दावा था क्रिस्टल स्कल उन्हें खतरों से आगाह कराता है। इन बातों को फैलने में समय नहीं लगा और कई लोग अन्ना के पास हीलिंग कराने आने लगे। इसके बाद कुछ लोगों के पास से और भी ऐसी खोपड़ियां बरामद हुईं। वैज्ञानिकों की थ्योरी थोड़ी अलग है। उनका कहना है कि कोई भी खोपड़ी प्री-कोलंबियन नहीं लगती। उनका कहना है कि इसे तराशने की तकनीक बिलकुल आधुनिक है। इसको बनाने की तकनीक विशेषज्ञों को असमंजस में डालती है।
0 Comments